शनिवार, 17 मई 2008

जीवन मृत्यु

आज मै चुपचाप बैठी सोच रही थी

अपने ही भावो मे कितनी उलरही थी

कि जिन्दगी और मौत कितनी करीब है

एक संसार मे लाती है तो दुसरी ले जाती है

लेकिन शमशान घाट पर ही

जाकर वैराग्य क्यो जागते .है

और मृत्यु पर ही सारे सगे सम्बन्धी ,

बिलख बिलख कर रोते क्यो है

शायद यहाँ हम एक पूरी जिन्दगी

का अन्त पाते है.

मरने वाले तो मर जाते है

पर कुछ लोग उनकी मृत्यु मे

अपना सारा जीवन तलाशते है(मेरी माँ)

1 टिप्पणी:

समयचक्र ने कहा…

मरने वाले तो मर जाते है
पर कुछ लोग उनकी मृत्यु मे
अपना सारा जीवन तलाशते है

बहुत बढ़िया कविता लगी लिखते रहिये धन्यवाद