शिखर
कभी- कभी लगता है
मेरी आँखे वाटर प्रुफ है
तभी तो बाहर का पानी बाहर
और भीतर की आर्द्रता
हमेशा भीतर गलती सडती है.....
सचमुच
वाटरप्रुफ चीजो के अन्दर
पानी ही नही
धूप का भी निषेध होता है
तभी तो भीतर की चीजे
सूख नही पाती
बल्कि सीलन समाते समाते
भरभराने लगती है
और फिर सुखने की तडप मे
शुष्क हो जाती है
शनिवार, 24 मई 2008
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1 टिप्पणी:
बिल्कुल सही फरमाया...
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