बुधवार, 20 अगस्त 2008

पतझड़ के बाद का दुख

सुनन्दा राय
-इलाहाबाद से ये कविताएं सुनन्दा ने भेजी है... एक हल्के से संकोच के साथ । लिखा है - कच्चा पका सा कुछ लिखती हूं , जिसे मुमकिन है लोग, कविता की श्रेणी में ना रखे - लेकिन पूरी होने के बाद तो कविता स्वायत्त होती है जिस पर लिखने वाले का भी कोई जोर नहीं चलता ..... इसलिए अब पढ़ने वालों की राय ही मान्य होगी

(एक)

रोज टूटते हैं
पत्ते-
दरख्त नहीं मैं जानती हूं
पतझड़ के बाद का दुख ।


(दो)

सो जाती हूं तब
पैर दौड़ते हैं
तुम्हारे पीछे - पीछे ।
हाय री- गुड़िया रानी
कित्ता - कित्ता पानी ।


(तीन)

नुक्कड़ की दुकान से
दस रूपए का गुलाब खरीदकर
दिया उसने
और कहा - प्यार
वह एक शरीफ दुनियादार आदमी था।

(चार )

दो अंगुल की बुद्धि
मां की
चावल का पानी नापती रही
मैं दो अंगुल से देखती हूं
दुनिया
कितने पानी में ।

गुरुवार, 14 अगस्त 2008

मारे गए गुलफाम

प्रभात रंजन
बात इतनी सी थी कि, दीवार गिरने से, एक बकरी मारी गई थी । राजा के इंसाफ का तकाजा था कि बकरी के जान के बदले में दोषी आदमी को फांसी दी जाए । लेकिन ये भी गजब हुआ कि भिश्ती से लेकर कोतवाल तक सभी बारी- बारी बेगुनाह साबित हुए । अब बेचारा राजा इंसाफ करे भी तो कैसे करे । गहरे दुख में डूब गया राजा । आखिरकार राजा को बचाया मंत्री ने ... एक तरकीब बताई - किसी तगड़े आदमी के गले में डाल दो फांसी का फंदा , क्योंिक इंसाफ होना जरूरी है । ये कहानी लोगो ने पहले से सुन रखी थी ,इसलिए खुश थे क्योंकि आखिरकार फंदा मोटे - तगड़े आदमी के गले से उतरकर लालची राजा के गले में ही जाना था । बैकुठ के लालच में राजा को मारा जाना था । लेकिन कहानी ने छल किया ( बाद में कुछ लोगो ने कहा कि ये दरअसल समय का छल था)। तगड़े आदमी के ईशारे पर राजा ने भीड़ की तरफ फंदा उछाला । कई -कई फंदे एक साथ । कोई समझे तब तक कस गई रस्सी, गर्दन के चारो ओर। कई - कई गर्दन एक साथ । पलक झपकते झूल गए जिस्म हवा में । प्रतिरोध का कोई मौका नहीं , संभलने का कोई संकेत नहीं । तब राजा ने प्रजा की ओर देखा और शब्दों को चबाते हुए कहा कि - आइंदा हमारे राज्य में कोई बकरी नहीं मरनी चाहिए । जनता मौन - स्तब्ध । मरघट सा सन््नाटा काफी देर तक फैला रहा । बाद में, वहां मौजूद कुछ लोगो ने बताया कि इस नरसंहार के बाद राजा ने िमठाईयां बांटी । चुटकुले सुनाए और लोगो को हॅसने की राय दी । अब लोग हॅसने का प्रयास कर रहे है । हम कल भी हॅसेगे.

धर्म की आंच पर कश्मीर सुलग रहा है .... नोएडा के कुछ किसान परिवारों में मातम का माहौल है... संसद में कुछ दिन पहले ही लोकतंत्र को निर्वस्त्र किया गया है ... कुछ लोगो पर बेहद जुल्म हुआ है .... मेरे साथी , मेरे पड़ोसी जार - जार रो रहे है ... बावजूद इसके हम हॅसेगे। हॅसना सेहत के लिए बेहतर है । देश की आजादी की सालगिरह मुबारक दोस्तो । राजा अमर रहे ।