शुक्रवार, 9 मई 2008

मासूम बुश और मुटाते हम

ओमप्रकाश
हम फिल्मों में काफी पहले से देखते आ रहे हैं कि जुड़वा भाईयों के बीच इतना प्यार होता है कि एक को मारे तो दूसरे को लगे। ऐसा ही कुछ रिश्ता हमारा अमेरिका के साथ हो गया है। खाएं हम पेट दरद हो उनका। अरे, अब ये दरद नहीं है तो और क्या है। बुश साहब कहते हैं कि पूरी दुनिया की महंगाई के लिए भारत का मध्य वर्ग ज़िम्मेवार है। 35 करोड़ का विशाल भारतीय मध्य वर्ग। महाशक्ति अमेरिका की पूरी आबादी से भी बड़ा। राष्ट्रपति महोदय का कहना है कि भारत का ये वर्ग खा खाकर मुटा रहा है। लेकिन अफसोस कि उनके ही इशारे पर चलने वाले संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े उन्हें झूठा साबित करते हैं। हमारे मासूम से बुश साहब को कोई बताए कि पिछले सालों में अमेरिका में अनाज की खपत 12 फीसदी की दर से बढ़ी है जबकि हमारे यहां सिर्फ 2.5 फीसदी। अरे, सिर्फ पिछले साल की बात करें तो अमेरिका में अनाज की खपत 31 करोड़ टन से भी ज्यादा रही तो वहीं, भारत में 20 करोड़ टन से भी कम। अब क्या बताए बेचारे बुश पूरी दूनिया की फिकर उन्हें इतना सताती है कि इन छोटी मोटी बातों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जा पाता।
हां, बुश महाश्य को ये भी बता दें कि खु़द उनके ही देश में मक्का को बड़े पैमाने पर जैव-ईंधन के लिय इस्तेमाल किया जा रहा है। साथ ही जानकार बताते हैं कि 2010 तक अमेरिका में 30 फीसदी मक्का का इस्तेमाल एथेनॉल बनाने के लिए होगा। लेकिन अब ये तय करना होगा कि पूरी दुनिया के 80 करोड़ कार मालिकों के लिए ईंधन तैयार करने में अनाज का लगाना है या भूखमरी के शिकार 1.5 अरब लोगों का पेट भरना।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

आतंकवाद हो या अनाज का संकट - इसके जिम्मेदार कमजोर और गरीब मुल्क हैं। और क्योंकि इस दुनिया का एक आका है ,जिसे इस दुनिया की बड़ी फिक्र है - इस गुनाह को यूं ही कैसे माफ किया जा सकता है । तो फिलहाल चेतावनी है कि कम खाओ ( यानि पहले से भी कम)- आगे हो सकता है कि भूखे और नंगे लोगों के खिलाफ सेना भेजी जाए ।