गुरुवार, 27 मार्च 2008

दसबजिया फूल

एक शहर,
जो सीवान था
आज भी मेरी स्मृतियों में
खिलता है
दसबजिया फूल की तरह ।

गाहे-बगाहे लोग पूछ ही लेते है कि भई कहां से हैं आप । सोंचता हूं कि बात शायद मेरे प्रांत तक जाते जाते रूक जायेगी लेकिन कई दफा परिचय के ढलान पर फिसल भी जाती है ,और मेरे शहर के मोड़ पर आ रूकती है। सीवान का जिक्र आते ही सामने वाला एक अजीब सी हंसी हंसता है जिसमें ये भाव होता है कि अच्छा आप भी ........... । शहाबुद्दीन ने मेरे शहर को भारत के नक्शे पर अलग से चस्पा करने का जो प्रयास किया है उसके लिए कई पीढियां उनकी शुक्रगुजार रहेंगी। समय के तेज धारा में, राजेन्द्र बाबू का नाम कहीं गुम गया । अच्छा हुआ , क्योंकि अच्छे परिवार के बिगड़ी औलाद की कैफियत देने से छूट मिल गई। बाकि - वहीं ठसक , वैसा ही अन्दाज ---- आरा , बलिया के साथ सारण की त्रिमूर्ती का जिक्र आज भी आजादी की लोककथाओं में होता है । विरोध के तीखे तेवर इस मिट्टी की खुबी है । शहाबुद्दीन के बरअक्स चन्द्रशेखर कि जैसे तोप के मुकाबिल छाती । अब है, तो है।

2 टिप्‍पणियां:

sushant jha ने कहा…

प्रभात जी...क्या खूब लिखा है..सीवान का मतलब शहावुद्दीन हो गया है और सचमुच राजेंद्र बावू तो अब सिर्फ सामान्य ज्ञान कि किताबों में सिमट गये हैं...बहुत खूब आपसे और भी उम्मीदें हैं...

Gopi Krishna Sahay ने कहा…

आप के लेखन से यह साफ झलकता है कि अपने शहर से आप बहुत प्यार करते हैं..पर ये बात समझ में नहीं आती कि आप ये स्वीकार करते हैं कि आज आपके शहर का नाम एक बाहुबली के नाम से जाना जाता है....यह तो आप जैसे पढ़े-लिखे लोगो का दायित्व है कि आप कैसे देखते हैं सीवान को....अगर आप ही प्रचार करने लगेगे कि
आप शहर को लोग शहावुद्दीन के नाम से जानते हैं तो और लोगों को कहना ही क्या...वैसे आपने इस सच्चाई को स्वीकार किया है जो काबिलेतारिफ है...रही बात बाबू राजेन्द्र प्रसाद की तो वे तो देशरत्न हैं...सीबान ही क्या पूरे देश को फक्र है उन पर...