रंजीत नाम है इस छोकरे का। पंद्रह - सोलह से ज्यादा की उम्र नहीं होगी । कद अच्छा निकला है लेकिन चेहरे से बचपन की मासूमियत अभी जाने का नाम नहीं ले रही। सड़क के किनारे वो जो चाय की दुकान है ना...हां वहीं जहां भीड़ सी लगी रहती है, रंजीत की है। रंजीत की मां दुकान चलाती है और रंजीत चाय की डिलिवरी करता है। माने ये कि यहां आसपास जितने ऑफिस हैं , वहां ठीक समय पर चाय लेकर पहुंचाता है। चपरासी से लेकर चेयरमैन तक सभी जानते हैं रंजीत को। बड़ा ही प्यारा लड़का है। अपने काम से बड़ा लगाव है रंजीत को। वैसे तो सभी ग्राहकों का ध्यान रखता है, लेकिन सामने ये जो न्यूज चैनल का ऑफिस है ना, उससे रंजीत को बड़ा जुड़ाव है।वहां अंदर जाने के लिए उसे परमिशन की जरुरत नहीं पड़ती। चाय की केतली ली और सीधे घुस गया। सुबह- दोपहर- शाम, तीनों वक्त की चाय। लड़को को भैया कहता है और लड़कियों को मैडम।लेकिन ये सब तो पुरानी बात हो गई। कुछ दिन पहले ये ऑफिस बंद हो गया न। बारी- बारी से सभी चले गए। ऑफिस के सभी लोग जाते हुए रंजीत से मिलकर गए, अपना फोन नंबर दिया, आते रहने का वादा भी किया। जिन्दगी की आपाधापी में कोई रंजीत को देर तक याद रखेगा, ऐसा नहीं लगता। लेकिन रंजीत को सभी याद हैं। पुराने लोग जब कभी पीएफ- तीएफ का काम कराने लोग आते हैं तो रंजीत इसरार करके चाय पिलाता है और पैसे नहीं लेना चाहता। धंधा तो अब भी अच्छा चल रहा है, लेकिन पता नहीं कैसी उदासी इस बच्चे के चेहरे पर आ गई है। कोई कहता है कि न्यूज चैनल में काम करने वाली किसी लड़की से इसे प्यार- व्यार हो गया था। अच्छा, तभी तो दिन भर में ऑफिस के तीन- चार चक्कर लगा लेता था। कोई छेड़ता था तो शरमा जाता था, और मुस्कुरा कर चाय की उबाल देखने लगता था। हूं...ठीक कहते हो... लेकिन कौन थी वो लड़की ? छोड़ो यार, तुम तो पीछे ही पड़ गए।लड़के का पहला प्यार थी, बस इस बात से वास्ता रखो। और इससे कुछ सिखो...पहले प्यार में दिल टूटा लेकिन तुम्हारी तरह देवदास बनकर नहीं बैठ गया।मुस्कुराता रहा, हमें- तुम्हें, सबको चाय पिलाता रहा। तुम होते साले तो शायर हो गए होते अबतक ।पट्ठे को एक दिन हमने छेड़ा तो हमें समझा गया- बोला, भैया हम तो आज भी प्यार करते हैं, वो हमसे बात करती थी, इतना ही बहुत था । समझे बेटा । अब जल्दी से चाय सुड़को और चलो। अबे पैसा तो दे दो चाय का ।" पैसा रहने दो प्रभात भैया...आपने सुना, यहां बगल में ही, तीन मकान छोड़कर, एक नया चैनल खुल रहा है...हां काम चल रहा है...मैं तो देखकर आया हूं...आप न सबको बता दो...जितने भी पुराने लोग हैं, सबकी नौकरी यहां हो जायेगी...फिर सब पहले जैसा हो जायेगा...अच्छा लगेगा, है ना प्रभात भैया ? " ---कौन आयेगा, कौन जायेगा, ये तो पता नहीं बेटा लेकिन हम सबके लिए तुम्हारा प्यार देखकर एक गीत याद आ रहा है, सुनोगे ? --रिश्ता दिल के दिल से ऐतबार का...जिन्दा है हमी से नाम प्यार का...किसी को हो ना हो हमे है ऐतबार...जीना इसी का नाम है। चलो जाता हूं...अबे घर जाकर खाना भी बनाना है। -- "प्रभात भैया मां ने गरम रोटी बनाई है,खालो"।
गुरुवार, 27 सितंबर 2012
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3 टिप्पणियां:
सर ये सच है हमारी जिन्दगी मै छोटे-छोजे रिश्ते बन जाते है पर हम उसे जिन्दगी की दोड़ मे उन रिश्तो को भुला देते है रंजित आपका नही हमारा भाई है उसकी चाय हमारे शरीर मे खुन के साथ दोड रही है ----बहुत दिल को छुने वाला है लेखv
vinod yadav assignment cneb
Bahut Badhiyaaa
rgds,
AJIT TIWARI
ladki ka pata chala ya nahi..yeh btaiye...
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