मिथिलेश कुमार सिंह
(इस ब्लाॉग पर कविता को लेकर खासी चर्चा हो चुकी है ... और इसीलिए किसी भी कविता को यहां देने से पहले एक संशय लाजिमी था... फिर भी मिथिलेश की ये कविता एक बार पढ़े जाने की मांग करती है ... इसलिए इसे सरेआम करने को मजबुर हूं .... मिथिलेश अच्छे टीवी पत्रकार तो हैं ही , सोंचते भी अच्छा हैं )
आपको नहीं लगता...कभी-कभी...
कि लड़कियां भी खबरों की तरह होती हैं...
कुछ अच्छी...कुछ बुरी...
कुछ टाइम पास...
कुछ बेकार...कुछ चलने वाली लड़कियां/खबरें
कुछ में टीआरपी होती है...
जैसे कुछ लड़कियों में...
कुछ खबरें अच्छी होती हैं...
लेकिन टीआरपी नहीं देतीं...
इसलिए नहीं चलतीं...
अच्छी खबरों की चर्चा कम ही होती है...
जैसे अच्छी लड़कियों की...
हर कोने में लोगों की निगाहें
सिर्फ नई खबरों ? पर होती हैं...
जैसे हर मर्द ? की नई लड़कियों पर...
खबरें जुटाई जाती हैं...
जैसे लड़कियां...
फिर शुरू होती है
खबरों की नक्काशी...
उन्हें सजाया जाता है...
जैसे लड़कियों को सजाते हैं...
खबरों को देखने लायक बनाते हैं...
जैसे लड़कियों की नुमाइश होती है...
नक्काशीदार खबर...
तराशी हुई लड़की...
तैयार है परोसने के लिए...
फिर खबरों से खेलते हैं...
जैसे लड़कियों से...
लोग चटखारे लेंगे...
लार टपकाएंगे...
अफसोस करेंगे...
जांघें खुजलाएंगे...
फिर निगाहें गड़ा देंगे अगली खबर पर...
जैसे अगली लड़की पर...
गुम हो जाती हैं खबरें ...
इस पूरी प्रक्रिया में...
सजाने और परोसने में...
जैसे कहीं गुम हो जाती है लड़की...
रविवार, 13 जुलाई 2008
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3 टिप्पणियां:
खबर और लड़की,ये जोड़ घटाव मियां मिथिलेश आप ही कर सकते थे। लेकिन एक बात कहूंगा कि खबर और लड़कों का पोस्टमार्टम तो सही है लेकिन लड़कियों के बारे में कुछ कह नहीं सकता। पर ऑफिस में गुफ्तगु तो कुछ ऐसी ही होती है मियां। एक अलग सोच है न्यूज रूम के अंदर बाहर की तस्वीर खींच दी। और प्रभात अपने मन पर किसी और को हावी मत होने दो। लोगों का काम है कहना....
भाई इस तरफ आना अच्छा लगा.श्रेष्ठ कर रहे हैं.
ज़ोर-क़लम और ज्यादा.
अच्छी रचना के लिए बधाई
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