जैसे ही हिलेरी क्लिंटन की दावेदारी ख़त्म हुई वैसे ही कहा ये जाने लगा कि हिलेरी ओबामा का समर्थन करेगी। इसके बाद से ही हिलेरी के समर्थक असमंजस में हैं। अमेरिका में कई सर्वेक्षण इस तरफ इशारा कर रहे हैं कि हिलेरी को समर्थन देने वाले कई वर्ग ओबामा का समर्थन करने के मूड में नहीं है। उनका वोट सीधे रिपब्लिकन राष्ट्रपति उम्मीदवार जॉन मेक्कन को जा सकता है। इस दौड़ में सबसे आगे हैं, वो श्वेत अमेरिकी जो कामकाजी वर्ग यानी वर्किंग क्लास से आते हैं। दूसरा सबसे बड़ा वर्ग है हिलेरी को समर्थन देने वाली महिलाएं। ये महिलाएं हिलेरी के बाद अब मेक्कन की ओर देख रही हैं।
शिकागो ट्रिब्यून मैगज़ीन ने 2004 में ही छापा था कि ओबामा को इसलिए कुछ श्वेत पसंद करते हैं, क्योंकि वो पूरी तरह काली नस्ल के नहीं है। मतलब ये कि चूंकि ओबामा की मां एक अमेरिकी श्वेत और पिता अफ्रीकी, इसलिए उन्हें पूरी तरह अश्वेत नहीं माना जा सकता, लेकिन अगर वो पूरी तरह अफ्रीकी नस्ल के होते तो। आज अमेरिका में ये बहस चरम पर है कि बराक ओबामा देश की विदेश नीति और आर्थिक नीति को संभालने और आगे बढ़ाने के लिए सही आदमी नहीं है। एक बड़ा वर्ग ये प्रचारित करने में जुटा है कि अमेरिका ओबामा के हाथों में सुरक्षित नहीं है।
अगर ओबामा हारते हैं तो उसका एक बड़ा कारण होगा उनका पूरा नाम ही। यानी "बराक हुसैन ओबामा" । इस नाम में लगा हुसैन बड़ा गुल खिला सकता है। लेकिन साथ ही महाशक्ति को आज इस नाम की ज़रुरत भी है, ख़ासकर 9/11 के मुस्लिम विरोधी अभियान के बाद। अमेरिका के जाने टिप्पणीकार अपने एक लेख में लिखते हैं कि ओबामा के साथ ही नस्लवाद का अंत हो जाएगा। क्या नस्लवाद के अंत के लिए ओबामा का इंतज़ार था जिसे ख़ुद मार्टिन लूथर किंग जूनियर भी नहीं मिटा सके। अमेरिका की एक पत्रिका लिखती है कि अमेरिकी की आर्थिक मंदी, बढ़ती महंगाई, विदेशी नीति की असफलता और इराक़ जैसे घावों के बाद भी अगर रिपब्लिकन उम्मीदवार ओबामा को हरा देता है तो इसका सिर्फ एक ही कारण होगा और वो है नस्लवाद। जाने माने इतिहासकार पॉल स्ट्रीट मानते हैं कि ओबामा को नस्लवादियों का सामना करना होगा।
अंत में। क्या मैं ये साबित कर रहा हुं कि अमेरिका आज भी नस्लवादी है? अगर ऐसा है तो कुछ दूसरे तथ्यों पर नज़र डालें। वियतनाम युद्ध के दौरान मारे गए अमेरिकी अश्वेत सैनिकों की संख्या श्वेत सैनिकों के मुक़ाबले दोगुनी थी। इसी दौरान न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा, हब्शियों को वियतनाम में अपने देश के लिए अपने हिस्से की लड़ाई करने का पहली बार मौका दिया गया है। यही नहीं उन काले सैनिकों को अलग दफनाया भी गया। ये तो हुई थोड़ी पुरानी बात, कुछ नए तथ्य। आज अमरीका की कुल आबादी के 12 फ़ीसदी अफ्रीकी सभी सशस्त्र बलों में 21 फीसदी और अमेरीकी सेना में 29 फीसदी हैं, जबकि वे अमरिका की कुल आबादी का सिर्फ 12 फीसदी है। इराक़ में भी यहीं अश्वेत बलिदान देने में आगे हैं। क्या ये सिर्फ एक संयोग है। मतदान का अधिकार लेने के लिए कड़े संघर्ष के बाद आज 14 लाख अफ्रीकी अमरीकियों यानी वोट देने वाले अश्वेत लोगों की 13 फीसदी आबादी को मामूली अपराधों के कारण मताधिकार से वंचित कर दिया गया है। यानी तब तो ओबामा हार जाएगें।
शिकागो ट्रिब्यून मैगज़ीन ने 2004 में ही छापा था कि ओबामा को इसलिए कुछ श्वेत पसंद करते हैं, क्योंकि वो पूरी तरह काली नस्ल के नहीं है। मतलब ये कि चूंकि ओबामा की मां एक अमेरिकी श्वेत और पिता अफ्रीकी, इसलिए उन्हें पूरी तरह अश्वेत नहीं माना जा सकता, लेकिन अगर वो पूरी तरह अफ्रीकी नस्ल के होते तो। आज अमेरिका में ये बहस चरम पर है कि बराक ओबामा देश की विदेश नीति और आर्थिक नीति को संभालने और आगे बढ़ाने के लिए सही आदमी नहीं है। एक बड़ा वर्ग ये प्रचारित करने में जुटा है कि अमेरिका ओबामा के हाथों में सुरक्षित नहीं है।
अगर ओबामा हारते हैं तो उसका एक बड़ा कारण होगा उनका पूरा नाम ही। यानी "बराक हुसैन ओबामा" । इस नाम में लगा हुसैन बड़ा गुल खिला सकता है। लेकिन साथ ही महाशक्ति को आज इस नाम की ज़रुरत भी है, ख़ासकर 9/11 के मुस्लिम विरोधी अभियान के बाद। अमेरिका के जाने टिप्पणीकार अपने एक लेख में लिखते हैं कि ओबामा के साथ ही नस्लवाद का अंत हो जाएगा। क्या नस्लवाद के अंत के लिए ओबामा का इंतज़ार था जिसे ख़ुद मार्टिन लूथर किंग जूनियर भी नहीं मिटा सके। अमेरिका की एक पत्रिका लिखती है कि अमेरिकी की आर्थिक मंदी, बढ़ती महंगाई, विदेशी नीति की असफलता और इराक़ जैसे घावों के बाद भी अगर रिपब्लिकन उम्मीदवार ओबामा को हरा देता है तो इसका सिर्फ एक ही कारण होगा और वो है नस्लवाद। जाने माने इतिहासकार पॉल स्ट्रीट मानते हैं कि ओबामा को नस्लवादियों का सामना करना होगा।
अंत में। क्या मैं ये साबित कर रहा हुं कि अमेरिका आज भी नस्लवादी है? अगर ऐसा है तो कुछ दूसरे तथ्यों पर नज़र डालें। वियतनाम युद्ध के दौरान मारे गए अमेरिकी अश्वेत सैनिकों की संख्या श्वेत सैनिकों के मुक़ाबले दोगुनी थी। इसी दौरान न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा, हब्शियों को वियतनाम में अपने देश के लिए अपने हिस्से की लड़ाई करने का पहली बार मौका दिया गया है। यही नहीं उन काले सैनिकों को अलग दफनाया भी गया। ये तो हुई थोड़ी पुरानी बात, कुछ नए तथ्य। आज अमरीका की कुल आबादी के 12 फ़ीसदी अफ्रीकी सभी सशस्त्र बलों में 21 फीसदी और अमेरीकी सेना में 29 फीसदी हैं, जबकि वे अमरिका की कुल आबादी का सिर्फ 12 फीसदी है। इराक़ में भी यहीं अश्वेत बलिदान देने में आगे हैं। क्या ये सिर्फ एक संयोग है। मतदान का अधिकार लेने के लिए कड़े संघर्ष के बाद आज 14 लाख अफ्रीकी अमरीकियों यानी वोट देने वाले अश्वेत लोगों की 13 फीसदी आबादी को मामूली अपराधों के कारण मताधिकार से वंचित कर दिया गया है। यानी तब तो ओबामा हार जाएगें।
1 टिप्पणी:
बहुत खुब लिखा है....
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