फिराक गोरखपुरी की गजल
बन्दगी से कभी नहीं मिलती
इस तरह ज़िन्दगी नहीं मिलती
लेने से ताज़ो-तख़्त मिलता है
मांगे से भीख भी नहीं मिलती
एक दुनिया है मेरी नज़रों में
पर वो दुनिया अभी नहीं मिलती
जब तक ऊँची न हो जमीर की लौ
आँख को रौशनी नहीं मिलती
तुझमें कोई कमी नहीं पाते
तुझमें कोई कमी नहीं मिलती
यूँ तो मिलने को मिल गया है ख़ुदा
पर तेरी दोस्ती नहीं मिलती
बस वो भरपूर जिन्दगी है ’फ़िराक़’
जिसमें आसूदगी नहीं मिलती
सोमवार, 26 अप्रैल 2010
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