शनिवार, 6 सितंबर 2008

कौशल्या देवी(मां) को श्रद्धांजली

प्रभात रंजन

कभी कभी सोचता हूं कि चन्द्रशेखर भाई जैसे लोग आखिर कैसे बनते हैं? सीवान जैसे शहर के एक दूर दराज गांव में पैदा होने वाला लड़का... कद-काठी समान्य...बाप- दादा की दी हुई कोई जागीर नहीं... लेकिन फिर भी ऐसा असाधारण व्यक्तित्व । अन्दर और बाहर दोनो की सादगी , जीवट और स्वाभिमान... चन्द्रशेखर भाई में कई ऐसी चीजें थी जो हम जैसो को जेएनयू के जमाने से प्रभावित करती थी। उनकी हत्या के बाद के सालों में धीरे - धीरे मैने समझा कि चन्द्रशेखर भाई को उनकी तालीम ने नहीं बल्कि मां ने बनाया था । अपने इकलौते बेटे की मृत्यु के बावजूद जो टूटे नहीं ऐसी औरत ही चन्द्रशेखर की मां हो सकती थी । चन्द्रशेखर भाई की हत्या के समय मैं सीवान में ही था । उनकी हत्या का विरोध करने जेएनयू के कुछ छात्र सीवान आए थे । तब के सीवान में शहाबुद्दीन का आतंक इतना था कि जेएनयू के वो छात्र जो सीवान से थे , इस विरोध सभा में शामिल नहीं हुए । खैर मैं उनकी कायरता का बखान नहीं करना चाहता । बस एक उम्रदराज, अकेली औरत के हिम्मत का जिक्र करना चाहता हूं। देश के गृहमंत्री ने मुआवजे के तौर पर एक लाख रूपए की रकम कौशल्या देवी को देने की पेशकश की । इकलौते बेटे के जाने के बाद वो रूपए एक अकेली औरत के लिए बड़ा सहारा बन सकते थे। लेिकन मां ने रूपए लेने से इंकार कर दिया । अगर कुछ मांगा तो बस इतना कि उनके बेटे के कातिल को सजा दी जाए । खैर राजनीतिक कारणों से इन्द्रजीत गुप्ता ऐसा नहीं कर सकते थे , नहीं किया । लेकिन कौशल्या देवी ने हार नहीं मानी। विरोध की जिस मसाल को चन्द्रशेखर भाई ने सीवान में जलाया उसे आगे बढ़कर उन्होने थाम लिया । िजसका नाम लेते हुए भी सीवान को लोग डरते थे , उसके खिलाफ उन्होने मोर्चा संभाल लिया । एक और प्रशासन और सरकार से शहाबुद्दीन को सजा देने की मांग करती रही तो दूसरी और हर मंच से शहाबुद्दीन को चुनौती देती रही कि अगर दम है तो मुझे मार कर दिखा । अपने लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए , अधिकार दिलाने के लिए , विधान सभा का चुनाव भी लड़ा । कौशल्या देवी सीवान में शहाबुद्दीन के खिलाफ प्रतिरोध की दीवार बन गईं । एक अटल , मजबुत दीवार । अब ये दीवार नहीं रही। दो दिन पहले कौशल्या देवी का देहांत हो गया है। न्याय के लिए ग्यारह साल लड़ने के बाद आखिरकार मां ने आंखे बंद कर ली । जिन्दगी जैसे अभावग्रस्त रही , मौत भी वैसी ही ...चुपचाप। आइए कोशल्या देवी को श्रद्धांजली दे और ईश्वर से प्रार्थना करे कि हमारे समाज में बहुत सारी कोशल्या देवी हो । क्योंकि कौशल्या ही चन्द्रशेखर को बनाती है।

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

कौशल्या देवी को मेरी भी श्रृद्धांजलि.

बहुत पढ़ा उनके और चन्द्रशेखर जी के बारे मान. फुरसतिया जी और मित्र अनिल रघुराज के माध्यम से.

सलाम करता हूँ उनकी पुण्य आत्मा को.


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chandan ने कहा…

प्रभात भाई,मैं चंद्रशेखर जी से कभी नहीं मिला...उनकी मां से भी नहीं..लेकिन माता जी से मेरी दो-तीन दफे बात हुई है...आखिरी बार तब हुई जब शहाबुद्दीन को पहले मामले में सजा हुई थी..उस दिन उन्होंने कहा था कि बहुत जल्द ही न्याय मिल जाएगा...यकीन जानिए फिर उनके सीवान के घर का नंबर खो गया और नौकरी ढूंढने के चक्कर बात नहीं कर सका...आज आपके हलफनामे को पढकर वो बातें याद आ गयी...आपके ब्लॉग के माध्यम से उन्हें प्रणाम करता हुं....उनकी और चंद्रशेखर जी की कोई फोटो आपके पास हो तो तोइस लेख के साथ जरूर लगाएं....एक बहादुर बेटे के बहादुर मां को याद करने के लिए आपका धन्यवाद