बुधवार, 10 सितंबर 2008

नक्शे पे अब कुछ नज़र नही आता-बाढ़ है या कि बिहार है क्या है ?



भूतनाथ वाया राजीव थेपरा

(िजसने जहां से देखा...मंजर उसे उदास कर गया। बस एक तकलीफ ही है जिसे हम बांट रहे है...आपस मेें... अपनों से । इस उदासी को भी आपसे बांट रहा हूं, राजीव जी से बगैर पूछे। और इस आशा के साथ कि दुख की ये रात भी आखिरकार ढ़ल जाएगी)

कई दिनों से बिहार के ऊपर उड़ रहा हूँ !बहुत सारे लोगों की तरह मैं भी यही सोच रहा हूँ कि क्या किया जाए , मगर जैसे कि कुछ भी करने का कोई बहाना नहीं होता,वैसे ही कुछ न करने के सौ बहाने होते हैं !सो जैसे धरती के लोग जैसे अपने घर के दडबों में कैद हैं,वैसे ही मैं भी बेशक खुले आसमान में तैर रहा हूँ ,मगर हूँ एक तरह से दड्बो में ही ....!चारों और जो मंज़र देख रहा हूँ ,मेरी रूह कांप रही है .....पानी का ऐसा सैलाब ....तिनकों की तरह बहते लोग ,पशु और अन्य वस्तुएं ......बेबसी,लाचारी,वीभत्सता,आंसू,कातारता,पीडा,यंत्रणा.....और ना जाने क्या-क्या ...! उपरवाला दुनिया बनाकर क्या यही सब देखता रहता है?सीधे शब्दों में बात कहानी मुश्किल हो रही है,थोड़ा बदलकर कहता हूँ ......

ये जो मंज़र-ऐ विकराल है ,क्या है
हर तरफ़ हश्र है,काल है ,क्या है ?
पानी-ही-पानी है उफ़ ,हर जगह ,
कोशी क्यूँ बेकरार है ,क्या है ?
डबडबाई है आँख हर इंसान की
बह रही है ये बयार है ,क्या है?
लीलती जाती है नदी सब कुछ को
गुस्सा क्यूँ इस कदर है,क्या है ?
मुझको अपने ही रस्ते चलने दो
ख्वाहिशें-आदम तो दयार है ,क्या है ?
मैं तो सबको ही भरती चलती हूँ
तुम बनाते हो मुझपे बाँध ,क्या है ?
मुझको हंसने दो खिलखिलाने दो
मुझको छेडो ना इस कदर,क्या है ?
कोई आदम को जा कर समझाओ
धरती का चाक गरेबां है ,क्या है ?
हर तरफ़ खौफ से बेबस आँखें हैं
मौत का इंतज़ार है, क्या है ?
थाम लो ना इन सबको बाहों में
कर रहे जो ये फरियाद है, क्या है ?
कोई आदम का मुकाम समझाओ
हर कोई क्यूँ बेकरार है ,क्या है ?
जो भी बन पड़ता है इनको दे आओ
वरना खुदाई भी शर्मसार है ,क्या है ?
किसने छीना है इनका चैनो-सुकून
वो नेता है, अफसरान है क्या है ?
इनके हिस्से का कुछ भी मत खा जाना
दोजख भी जाओगे तो पूछेंगे, क्या है ?
नक्शे पे अब कुछ नज़र नही आता
बाढ़ है या कि बिहार है ,क्या है ?

साल- दर-साल ये घटना होती है ।होती चली आ रही है ,हजारों लोग हर साल असमय काल-कलवित हो रहे है ,मगर ऐसी लोमहर्षक घटनाओं में भी तो अनेकानेक लोगों की तो चांदी ही कट रही है ! लोग ज़रूरत का सामान भी कई गुना ज्यादा महँगा बेच रहे हैं !नाव वालों का भाव शेयरों की तरह चढा हुआ है ! बहुत सारे राहतकर्मी ग़लत कार्यों में लगे हुए हैं !राहतराशि और सामान बाँटने वाले बहुत सारे लोग यह सब कुछ बीच में ही हजम कर जा रहे है !यह तो गनीमत है कि ऐसे मौकों पर अधिसंख्य लोगों में मानवता कायम रहती है ,सो बहुत काम सुचारू रूप से हो जाता है ,वरना तो पीड़ित लोगों का भगवान् ही मालिक होता !!मैं दंग हूँ कि ऐसे आपातकाल में भी कुछ लोग ऐसे निपट स्वार्थी कैसे हो सकते है ,जो शर्म त्याग कर इन दिनों भी गंदे और नीच कर्मों में ही रत रहे !!हे भगवान् इन्हे माफ़ कभी मत करना !

शनिवार, 6 सितंबर 2008

कौशल्या देवी(मां) को श्रद्धांजली

प्रभात रंजन

कभी कभी सोचता हूं कि चन्द्रशेखर भाई जैसे लोग आखिर कैसे बनते हैं? सीवान जैसे शहर के एक दूर दराज गांव में पैदा होने वाला लड़का... कद-काठी समान्य...बाप- दादा की दी हुई कोई जागीर नहीं... लेकिन फिर भी ऐसा असाधारण व्यक्तित्व । अन्दर और बाहर दोनो की सादगी , जीवट और स्वाभिमान... चन्द्रशेखर भाई में कई ऐसी चीजें थी जो हम जैसो को जेएनयू के जमाने से प्रभावित करती थी। उनकी हत्या के बाद के सालों में धीरे - धीरे मैने समझा कि चन्द्रशेखर भाई को उनकी तालीम ने नहीं बल्कि मां ने बनाया था । अपने इकलौते बेटे की मृत्यु के बावजूद जो टूटे नहीं ऐसी औरत ही चन्द्रशेखर की मां हो सकती थी । चन्द्रशेखर भाई की हत्या के समय मैं सीवान में ही था । उनकी हत्या का विरोध करने जेएनयू के कुछ छात्र सीवान आए थे । तब के सीवान में शहाबुद्दीन का आतंक इतना था कि जेएनयू के वो छात्र जो सीवान से थे , इस विरोध सभा में शामिल नहीं हुए । खैर मैं उनकी कायरता का बखान नहीं करना चाहता । बस एक उम्रदराज, अकेली औरत के हिम्मत का जिक्र करना चाहता हूं। देश के गृहमंत्री ने मुआवजे के तौर पर एक लाख रूपए की रकम कौशल्या देवी को देने की पेशकश की । इकलौते बेटे के जाने के बाद वो रूपए एक अकेली औरत के लिए बड़ा सहारा बन सकते थे। लेिकन मां ने रूपए लेने से इंकार कर दिया । अगर कुछ मांगा तो बस इतना कि उनके बेटे के कातिल को सजा दी जाए । खैर राजनीतिक कारणों से इन्द्रजीत गुप्ता ऐसा नहीं कर सकते थे , नहीं किया । लेकिन कौशल्या देवी ने हार नहीं मानी। विरोध की जिस मसाल को चन्द्रशेखर भाई ने सीवान में जलाया उसे आगे बढ़कर उन्होने थाम लिया । िजसका नाम लेते हुए भी सीवान को लोग डरते थे , उसके खिलाफ उन्होने मोर्चा संभाल लिया । एक और प्रशासन और सरकार से शहाबुद्दीन को सजा देने की मांग करती रही तो दूसरी और हर मंच से शहाबुद्दीन को चुनौती देती रही कि अगर दम है तो मुझे मार कर दिखा । अपने लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए , अधिकार दिलाने के लिए , विधान सभा का चुनाव भी लड़ा । कौशल्या देवी सीवान में शहाबुद्दीन के खिलाफ प्रतिरोध की दीवार बन गईं । एक अटल , मजबुत दीवार । अब ये दीवार नहीं रही। दो दिन पहले कौशल्या देवी का देहांत हो गया है। न्याय के लिए ग्यारह साल लड़ने के बाद आखिरकार मां ने आंखे बंद कर ली । जिन्दगी जैसे अभावग्रस्त रही , मौत भी वैसी ही ...चुपचाप। आइए कोशल्या देवी को श्रद्धांजली दे और ईश्वर से प्रार्थना करे कि हमारे समाज में बहुत सारी कोशल्या देवी हो । क्योंकि कौशल्या ही चन्द्रशेखर को बनाती है।