tag:blogger.com,1999:blog-5454544549183158526.post8602324232335580532..comments2023-02-23T06:31:22.753-08:00Comments on हलफ़नामा: सहयात्रीप्रभात रंजनhttp://www.blogger.com/profile/04691009431273824905noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5454544549183158526.post-84204934492074536532008-04-23T02:40:00.000-07:002008-04-23T02:40:00.000-07:00हुजूर, जमीन बने रहना बड़ी बात है...और अगर आप कीमती...हुजूर, जमीन बने रहना बड़ी बात है...और अगर आप कीमती भी हैं तो क्या बात है....अजी मकां तो बन बन के उजड़ते रहते हैं...जमीं हैं तो ही बेशकीमती हैं....एक खैरख्वाहअभिषेक पाटनीhttps://www.blogger.com/profile/10218693023761216554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5454544549183158526.post-62627170623868111602008-04-22T03:13:00.000-07:002008-04-22T03:13:00.000-07:00अद्भुभुत है, भाई यह कविता तो. टेलीविजन चैनलों में ...अद्भुभुत है, भाई यह कविता तो. टेलीविजन चैनलों में फंस से गए साथियों के लिए या यूं कहें कि पूरी पत्रकार बिरादरी के थोड़े से समझदार लोगों को संतोष देने वाला.<BR/>अजीतsarokarhttps://www.blogger.com/profile/03718079949865163809noreply@blogger.com