tag:blogger.com,1999:blog-5454544549183158526.post1173865032640630702..comments2023-02-23T06:31:22.753-08:00Comments on हलफ़नामा: जरा देखिए, रिल्के क्या कहते हैं कविता लिखने वालों के लिएप्रभात रंजनhttp://www.blogger.com/profile/04691009431273824905noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5454544549183158526.post-25678813166409863282011-05-19T22:51:39.320-07:002011-05-19T22:51:39.320-07:00अद्भुत..अद्भुत..Shashi K Jhahttps://www.blogger.com/profile/01242896691348585770noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5454544549183158526.post-49275894101315980882008-06-23T02:39:00.000-07:002008-06-23T02:39:00.000-07:001996 में राजी सेठ जी का अनुवाद प्रकाशित हुआ था। दो...1996 में राजी सेठ जी का अनुवाद प्रकाशित हुआ था। दो आकर्षण थे… एक तो कविता लिखना शुरू किया ही था और दूसरा जर्मन सीख रह था और रिल्के जर्मन कवि थे… 2 प्रतियाँ खरीदीं… अपने और अपने मित्र के लिये और पढ़ना शुरु किया। जो अच्छा लगा उसे रेखांकित कर लिया। अन्त में पूरी किताब ही रंगीन हो गई। ये पत्र किसी भी कवि के गीता हो सकते हैं… इतने बार पढ़ा है इन पत्रों को कि आत्मसात हो गये हैं। फ़िलहाल किताब पीछे घर पर ही छूट गयी थी सो यहां वही जाने पहचाने शब्द पढ़कर बहुत अच्छा लगा।<BR/>शुभम।महेनhttps://www.blogger.com/profile/00474480414706649387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5454544549183158526.post-8283432746745238072008-05-31T12:08:00.000-07:002008-05-31T12:08:00.000-07:00काश हमें भी हिन्दी में शब्द लिखने आता. लेकिन हमें ...काश हमें भी हिन्दी में शब्द लिखने आता. लेकिन हमें प्रभातजी का लेखन बहुत ही<BR/>अच्छा लगा कियुं की मैं हिन्दी पढ़ सकता हूँ और बंगला मेरा मत्री भाषा है जिसे हमें गर्ब हे.<BR/> कभी मैं भी कबिता लिखता था और शब्द में खो जाता था. इतने अच्छा लेखन पढ़के मुझे हिन्दी में खो जाने का मन करता हे लेकिन अफ्सोश.... काश .......<BR/>देब्दुलाल पाहादी (देब) . debdelhi@gmail.commedianewshttps://www.blogger.com/profile/10524419312983868218noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5454544549183158526.post-46913569937716543562008-05-29T23:38:00.000-07:002008-05-29T23:38:00.000-07:00सुशांत जी..हो सकता है आपको ये तमाम भावनाएं आपके भी...सुशांत जी..हो सकता है आपको ये तमाम भावनाएं आपके भीतर बिल्कुल इसी तरह उमड़ी हों... जैसा आपने लिखा है... लेकिन ये अधिकारबोध क्यों पालकर बैठे हैं... जो कुछ आपने लिखा वो आपका था... कम से कम ये लेख पढ़ने के बाद तो आपको ऐसी सोच से खुद को दूर कर ही लेना चाहिए था... लिहाजा कुछ खारिज करने से पहले.. ये समझ लेने की कोशिश होनी चाहिए... क्या वाकई जो कुछ आपने लिखा वो आपका था.. या फिर किसी और का...जो उस खास मनोदशा, खास तरह के माहौल... खास तरह के हालात से कुछ चुरा लाया था... और की थी ईमानदार कोशिश अपनी बात कहने की... दुनिया में कुछ भी अंतिम सत्य नहीं होता...लिहाजा, इतनी बड़ी बात कहते हुए...इतनी हड़बड़ी ठीक नहीं... हालांकि ये मेरे अपने विचार हैं.... आप आजाद हैं...वर्तमान की संभावनाओं के हिसाब से अपने व्यक्तित्व का कोई भी हिस्सा हमेशा के लिए खारिज करने के लिए....शेष सब ठीक है।विवेक सत्य मित्रम्https://www.blogger.com/profile/14100672167730690279noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5454544549183158526.post-56275970638487932922008-05-29T23:01:00.000-07:002008-05-29T23:01:00.000-07:00इस लेख को पढ़ना दुनिया के सबसे हसीन एहसासों में से...इस लेख को पढ़ना दुनिया के सबसे हसीन एहसासों में से एक है। ये लेख तो पहले अपने आप में एक कविता जैसा लगता है। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मैं सोचता हूं कि कम से कम मुझे कविता की विधा में अपना हाथ नहीं जलाना चाहिए...एतद द्वारा मैं घोषणा करता हूं कि अतीत में लिखी गई मेरी सारी कविताएं खारिज की जाती है..क्योंकि कविता लिखने के लिए जो दिल चाहिए..वो मेरे पास नहीं है।sushant jhahttps://www.blogger.com/profile/10780857463309576614noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5454544549183158526.post-37133202237153693962008-05-29T17:40:00.000-07:002008-05-29T17:40:00.000-07:00आभार इस उम्दा आलेख के लिए.आभार इस उम्दा आलेख के लिए.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com